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हो, लेकिन उसे बहुत मानने कि इच्छा होगी । और इस आप-बडाई को पोसने में गुण को आगे बढ़ाना एवं और भी गुण प्राप्त करना ही भूल जाएगा । फिर तो अच्छा भी कुछ किया जाएगा तो वह भी इस उद्देश्य से कि 'दूसरे लोग किस तरह मेरी प्रशंसा करें ? कैसे मैं इसे इनकी जानकारी में लाऊँ ? (प्रकट करूँ ?)
ऐसी ऐसी जो अनेक भयानक खराबियाँ हैं, उनका आत्मश्लाघा से पोषण होता है । अतः मनुष्य मानव मिट कर कुमानव बन जाता है ।
चंडसोम कुमानवता के 'अस्थान-अमिनिवेश' और 'पली-मात्सर्य' इन अपलक्षणों में डूबने के कारण सुशील पली के प्रति बुरा सोच रहा है।
१९. भाई-बहन का घात ।
आगे चंडसोम का क्या होता है ? विषय रंग से भवः यह कैसे कम हो ? :
अब बात यह होती है कि चंडसोम के गाँव के बाहर एक नट-मंडली आती है। उसका हरदत्त नामक मुख्य संचालक है । वह सारे गांव को नाटक देखने का आमंत्रण देता है । अतः रात के पहले प्रहर में गाँव के लोग नाटक देखने चले। ऐसा देखने को किसका मन न हो ? संसार के भूले-भटके जीव इन्द्रिय-विषयों के ऐसे रंगी और संगी बने हुए हैं कि स्वप्न में भी उनकी यही दौडधूप होती है, तो जगते वक्त का तो पूछना ही क्या ? अनजाने में भी विषय-संग होने पर मन के रंग गाढ़ बनते हैं तो जानबूझकर विषय संग कर कर के मन के रंगों की भरपूर बाढ आने में क्या कमी रहे ? आखिर संसार में जीव इसी कारण भटकता है न? यह सूचित करता है कि :___ भव में भ्रमण करनेवाले ऐसे विषय-रंगों को कम करना हो तो वीतराग-प्रभु का स्वरुप
एवं उनकी कल्याण-आज्ञा का विचार भरपूर मात्रा में सामने रखना होगा। ___ साथ ही रंग चढाने वाले विषय-संग (विषयासक्ति) को काटते रहना होगा । मन मार कर भी इसका भगीरथ पुरुषार्थ जगाने से ही विषय रंग कम होने लगेंगे। आर्यों की कद्रदानी (गुणग्राहकता) :
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