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चंडसोम की आत्मदशा ही ईर्ष्यापूर्ण है, अतः अपनी रुपवती पत्नी सुशील होते हुए भी, गाँव के युवकों के उसे घूर घूर कर देखने से चंडसोम उस पर पत्नी पर क्रुद्ध होता है । पत्नी का कोई अपराध ? रुपवती होना गुनाह गिना जाय ? तो वह जब पानी भरने, कुछ काम करने बाहर जाए तो कामी मनुष्य उसे घूर कर देखें, क्या उसमें उसका कसूर माना जाए ? नहीं तो भी चंडसोम किसके कसूर से उसपर क्रोधित होता है ? युवक लोग कुटिल है तो उन पर संताप हो भी सही परन्तु पत्नी पर संतप्त होने का कोई कारण ? कहना ही होगा कि इसमें तो चंडसोम की आत्मदशाही कारणभूत है । अपना विषैला - जहरीला स्वभाव ही उसे जला रहा है ।
१८. कुपुरुष के चार लक्षण
यहाँ कुवलयमालाकार कहते हैं -
'अत्थाणऽभिनिवेसो, ईसा तह मच्छरं गुणसमिद्धे । अत्ताणंमि पसंसा, कुपुरिसमग्गो फुडो एसो ||
अर्थात (१) अस्थाने अभिनिवेश - दुराग्रह - हठाग्रह (२) ईर्ष्या (३), गुणसमृद्ध पुरुष के प्रति मत्सर और (४) आत्मश्लाधा
यह स्पष्ट कुपुरुष का मार्ग है । दुर्जन (बुरे आदमी) के ये चार लक्षण हैं। फिर इनमें से चाहे एक भी हो तो वह कुपुरूषता - दुर्जनता है; सत्पुरूषता - सज्जनता नहीं ।
(१) अभिनिवेश
पहला है अस्थाने अभिनिवेश ! अर्थात् जहाँ जिद करने जैसा न हो पकडे रहना योग्य न हो, हठाग्रह करने योग्य न हो वहाँ जिद पकड़ हठाग्रह रखना कुपुरूषता
है ।
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(i) कई ऐसे हठीले गुरूजन - कुटुंब के मुखिया होते हैं जो घर बार चलाने में छोटी छोटी बात की जिद पकड़ कर सारे परिवार को डाँट-डपट करने लगते हैं। और फलतः वें सब कुटुंबियों के अप्रिय बन जाते हैं। सचमुच तो वहाँ साधारण
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