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दान देता है सो ले आओ ।
बस, मुनि बीच चौमासे निकल पडे नेपाल देश को ! और राजा से रत्नकंबल लेकर खाली बाँस में डाल कर लौट पड़े। रास्ते के जंगल में लुटेरे मिले, पूछने लगे - क्या है पास में ?' उन्होंने झूठ बोला 'कुछ नहीं, यह खाली बाँस है ।'
लुटेरे भला छोड़ दे ? बाँस को जाँचने पर कम्बल निकला । अब क्या हो ? मुनि घबराये - 'हाय ! यह तो धक्का व्यर्थ जा रहा है, कंबल भी जाता है और वेश्या भी नहीं मानेगी ।' अतः चोरों के पैरों पड़ कर सारी बात समझाकर गिड़गिडाते हुए प्रार्थना की 'कंबल मुझे दे दो। वरना वेश्या के न रीझने के कारण मुझे आत्महत्या करनी पड़ेगी ।' चोरों को एक संन्यासी के रूप में उन पर दया आयी और कंबल देकर छोड़ दिया ।
मुनि वेश्या के पास आये, हर्ष से कंबल देकर कहते हैं, 'ले यह रत्नकंबल बस ! अब तो मौज करवाओगी न ?' सोचिये -
के कारण मुनि को कितने दोष :- गिनो, एक ईर्ष्या के पीछे उलटा ढंग अपनाने चले तो कितने दोषें में पडें ? (9) गुरुआज्ञा का उल्लंघन (भंग) (२) साधु के लिए अयोग्य वेश्या - स्थान में वास ( ३ ) कामवासना की भभक और भोग की इच्छा (४) वेश्या के आगे दीनता और बेशर्म माँग (५) चातुर्मास में बरसती बारिश में सफर, जिनाज्ञा-भंग तथा जीव-विराधना (६) राजा के पास से रत्नकंबल का परिग्रह स्वीकार किया (७) बाँस छिपाने की माया (कपट) (८) चोरों के सामने असत्य भाषण (९) चोरों से प्रार्थना (१०) वहाँ से छूटने का आनन्द और वेश्या का उपभोग प्राप्त होने की कल्पना से बेहद खुशी ।
कितने दोष पैदा किये ? फिर भी वेश्या की सज्जनता के कारण इतने से निपटा | वर्ना वेश्या सेवन में चारित्र का विनाश ! आदि कितने ही अन्य भयंकर दोष उपस्थित होते ।
वेश्या समझदार थी कि उसने कंबल लेकर सीधे गटर में डाल दिया । मुनि कहते रहे - 'अरे अरे ! यह क्या कर रही है तू ? मैं कितनी कठिनाई से लाया और फिर कितना मूल्यवान है यह कंबल ? उसे तू नाली में डाल रही है ?
वेश्या के हित- वचन :
तब वेश्या बोली मुझ से कहते हैं, पर आप स्वयं क्या कर रहे हैं सो देखना है आपको ? कितनी मुश्किल से गुरू से प्राप्त यह चारित्र - रत्न और वह भी ऐसा
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