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दुःख रूप है । केवल राग के आवेश का अन्धत्व इतना जबरदस्त है कि जिससे उस रागान्ध अवस्था में अज्ञानी जीव को दुःखरूपता दिखाई नहीं देती अन्यथा
तटस्थ रूप से (A) वस्तु की एवं (B) जीव की अपनी आगेपीछे की स्थिति पर दृष्टिपात करे तो दुःखरूपता शीघ्र ही समझमें आ जाती है।
(ब) जीव की पूर्वापर (आग-पीछे की) स्थितिः
नादान बच्चा दाद-खुजली की खाज खुजलाने के मजे में उसे सुख-स्वरूप मानते इससे वह सचमुच सुखरूप थोडा ही है ? समझदार मातापिता तो उसे दुःखरूप मानकर उसे मिटाने को दवा ही करवाते हैं । उसी तरह जगत के पदार्थों के विषय में ज्ञानी लोग समझते हैं कि ये सब पदार्थ जीव को भले ही खुजली की प्यास उत्पन्न कर खुजलाने जैसा आनन्द दिलाएँ परन्तु सचमुच वे दुःखरूप ही हैं। इसलिए उसे दूर करने और उसकी खुजली मिटाने के ही उपाय बताते है । जैसे खुजली में रक्त-विकार होने के कारण साथ ही खुजलने के फलस्वरूप पुनः खुजली और रक्तविकार बढ़ने के कारण जीव की आगे-पीछे की स्थिति रोगरूप ही कहलाएगी । अतः बीच का आनंद सचमुच सुख नहीं है, और उसे उत्पन्न करने वाला खुजली का रोग भी सुखरूप नहीं। वैसे ही विषय-राग जीव का विकार है, और विषयसम्पर्क पुनः रागवृद्धि - विकारवृद्धि करनेवाला है - दोनों परिस्थितियाँ रोगरूप हैं । अतः बीच में होनेवाला आनन्द और उसे उपस्थित करने वाले विषय भी सुखस्वरूप नहीं है। जन्म की खुजली के मरीज को उसकी रोगरूपता का भान नहीं होता और अनादि काल के विषय-राग के मरीज जीव को उसकी रोगरूपता का भान ही नहीं होता।
यह हुई जीव की पूर्वापर स्थिति की बात ।
(अ) वस्त की पूर्वापर (आगेपीछे) स्थिति की बात । हरामी (कुलटा) स्त्री और मुनीम ___ अब वस्तु की पूर्वापर स्थिति पर विचार करने के लिए एक उदाहरण के तौर पर देखिये कि किसी को हरामखोर (बदमाश) पत्नी मिली हो, और वह कहीं दुष्कर्म करके पैसे ले आवे और उसके द्वारा पति को बढिया खाना खिला कर सुख दे और पति उस सुख के बदले उसे शाबाशी दे, तो परिणाम स्वरूप वह पुनः और अधिक व्यभिचार करे तो क्या वह स्त्री अपने पति के लिए सुखरूप गिनी जाएगी? अथवा मानो कि कोई मुनीम सेठ के नाम पर बाहर से रकम ले आवे उसमें से थोडी खुद रख ले और थोडी लाकर सेठ को दे और कहे कि 'मैंने आप के नाम से व्यापार किया था उसका यह मुनाफा लीजिये । 'सेठ उसे लेकर खुश होकर
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