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क्या माता-पिता को पक्का पता है कि 'वह लायब्रेरी में गयी या बाग में या कहाँ गयी ? या क्या यह मालूम है कि लायब्रेरी में भी किसी विद्यार्थी के साथ बैठी छेड़-छाड़ कर रही है ? या पढ रही है ?" कैसे भी मार्ग पर चढ़ जाय तो आज उसे इसका डर है ? नहीं ! साधनों का आविष्कार हो गया है फिर डर काहे का ? बरसों पहले की बात है एक दवा का व्यापारी कहता था मेरी दुकान से कुछ साधन ८० प्रतिशत कॉलेजियन युवक युवतियाँ ले जाते है ! इसमें सदाचार की शिक्षा ही कहाँ रही । 'लड़की कमाकर लाती है' इतनी ही माँ बाप को देखना है । फिर वह कहाँ घूमती फिरती है ? क्या करती है ? यह सब वे क्यों देखें ? तब विनय की शिक्षा भी कहाँ है ?
बिना विनय के विद्या नहीं, मनुष्य को हृदय से मनुष्य बनाने वाली विद्या अविनीत में परिणमन नहीं पाती । कवि ने कहा है -
'विनय वड़ो संसारमा, गुणमां अधिकारी
माने गुण जाये गळी, प्राणी जो जो विचारी, रे जीव ! मान न कीजिए ।
संसार में विनय बड़ी चीज है । (१) यह गुणों के लिए अधिकारी बनाता है । (२) विनय से बुद्धि स्वच्छ बनती है । (३) कुशाग्र और वस्तु स्थिति की ग्राहक बनती है । उक्त विद्यार्थी ने गुरू का विनय पहले सम्हाला था फलतः उसकी बुद्धि ऐसी बनी थी । इसलिए उसने आश्चर्यकारक चमत्कारपूर्ण अनुमान लगाये । यह है वैनयिकी बुद्धि ।”
'कार्मिकी बुद्धि' अर्थात किसी भी प्रकार के पेशे, व्यवसाय का काम करते करते उसमें निपुणता मिल जाय, और उसमें बुद्धि कुशाग्र तेज चले। आज सुनने में आता है कि बड़े कारखानों में कोई मशीन बन्द हो जाय तो बडे बडे दो हजार का वेतन पानेवाले इंजीनियर भी सोच में पड़ जाते हैं, परन्तु बरसों से वहाँ काम करने वाला मशीनमेन झट उलझन हल कर लेता है। क्योकि उसके 'कार्मिकी बुद्धि' बन गयी है । बढई के बेटे को औजार चलाना और चीज बनाना जैसे बाएँ हाथ का खेल है । बिना सीख हुआ यों ही हैरान होता है । अच्छी (धार्मिक) पाठशाला में या माता पिता के अथवा किसी साधर्मिक के हाथ तले तैयार हुआ लड़का प्रतिक्रमण
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पौषध आदि करने में जो प्रवीणता पा लेता है वह कितने ही बडी उम्र के लोगों
में नहीं दिखाई देती। यह कार्मिकी बुद्धि है ।
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