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वीतराग बनने के लिए हमारे सामने कैसा आदर्श होना चाहिए ? सराग या वीतराग ?
जीवन में सत्यवादिता विकसित करने के लिए आदर्श के तौर पर उत्तम सत्य वादी ही दृष्टि - समक्ष रहना चाहिए न ? ब्रह्मचारी बनने के इच्छुक अपनी नजर के सामने क्या सर्वथा स्त्री संगरहित संपूर्ण ब्रह्मचारी को रखें तो ही ध्येय की दिशा में आगे बढेगा ? या अब्रह्मचारी स्त्री संगी को रखे तो ? बस, इसी तरह अनादि अनंत काल से जब हम रागद्वेषादि के योग से मर रहे हैं तो अब उसका संग छोडना वीतराग को भजने से संभव होगा या रागवाले को भजने से ?
सांसारिक (दुनियाबी) चीज़ के लिए भी सरागी देवको नहीं माना जायःप्र० लेकिन जब तक मोक्ष न हो जाय तब तक तो सांसारिक वस्तुओंकी जरूरत के लिए सराग देव को भजना पड़े न ?
उ० इसके लिए तीसरे मुद्दे को
समझों
(३) इस लोक और परलोक में जीव का जो उत्कृष्ट भला अरिहंत प्रभु के प्रभाव से होता है वह अन्य किसी के प्रभाव से नहीं होता ।
इस की वज़ह यह है कि कई जीव जीवनभर के पापी होते हुए भी अन्त समय में अरिहंत देव के ध्यान में मन पिरोने से उच्च सद्गति को प्राप्त हुए हैं। शूली की सजा पाये हुए चोर को श्रावक ने अरिहंत नमस्कार दिया तो वह मर के देव बना ।
चंडपिंगल चोर भी इसी तरह मरते समय अरिहंत नमस्कार पाने से राजपुत्र
बना ।
चील बाण से बिंध कर मर रही थी, उसे नवकार मिला तो सुदर्शना राजकुमारी बनी।
कमठ तापस के लकडे का अधजला साँप पार्श्वनाथ प्रभु का मुख देख कर और अर्हन्नमस्कार प्राप्त कर मरने पर नागकुमार देव लोक का इन्द्र धरणेन्द्र
बना ।
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महापुण्य के दाता भगवान् क्या अल्प पुण्य नहीं देंगें ?
तब यह सोचना चाहिए कि जिन वीतराग अरिहंत परमात्मा का इतना सारा प्रभाव है कि उन के ध्यान नमस्कार से उच्च सद्गति के महापुण्य पैदा होते हैं तो क्या उन प्रभु का इससे कम पुण्य उत्पन्न करने का प्रभाव नहीं होगा ? जिस में करोड़ों रुपये देने का सामर्थ्य है, क्या उसमें हजार -दो हजार देने का सामर्थ्य नहीं होगा ?
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