________________
करने की क्या जरूरत है।
कवि गाते है 'प्रभु! मुझे तुमसे काम है ? (प्रभु! मारे तुमशुं काम!) जब कि आप को ऐसे गाना है - "प्रभु ! मुझे धन से काम है ।"
भगवान की आवश्यकता कितनी ? कब ?
मोहराजा धर्मराजा का उपहास करता है :
दुःख आने पर हे भगवान !' पर वह जरा सा कम होते ही 'कैसा?' तो यह कि धन-माल-परिवार की ही माला जपना। भगवान् को याद ही कौन करता है? फिर तो मिली हुई सुविधा में फँस जाना । धर्मराजा के साथ मोहराजा का यह मजाक है | वह धर्म से कहता है, ले जा, ले जा, तू मेरे सेवक जीव को भगवान् के पास, लेकिन मनचाहा मिलने की ही देर है, उसके बाद यह यदि भगवान को याद करे तो मेरा नाम मिटा देना ।' महाउपकारी भगवान को ही भूल जाना यह कृतघ्नता-बेशर्मी हरामीपन कहा जाय या और कुछ ? __ आज के लडके क्या करते हैं ? माँ-बाप के पास से सबकुछ सारा जन्म,संपूर्ण पालन-पोषण-शिक्षण, धंधा और घरवाली मिल गयी बस, इतनी ही देर । फिर क्या तो 'अलगौझा' | माँ-बाप को पहचानता ही कौन है ? याद ही कौन करता है ? भगवान के प्रति हमारी ऐसी स्थिति हो तो यह हरामीपन है कि और कुछ ?
सेठ की पुत्री रानी
वह बनिया इसलिए भगवान् से प्रार्थना करता है कि इसकी पुत्री को राजा स्वीकार कर ले । 'हे भगवान् ! राजा मेरी कन्या को स्वीकार कर ले ऐसा करो।' इधर मंत्री (अमात्य) ने राजा को ‘बात जम गयी है, यह समझा दिया । बाद में जब सेठ मंत्री के यहाँ फेरे लगाता है तो पहले तो कहता है 'अभी तक मौका नहीं मिला' बाद में कहता है 'राजा के गले बात उतरी नहीं । इसकी मुझे यह वजह मालूम होती है कि राजा साहब को कन्या चाहिए हो तो बड़े राजाकी कन्या आ सकती है, इतना ही नहीं बड़ा दहेज भी लाए । तुम्हारी कन्या ले तो तुम दहेज क्या दो कि तुम्हारी कन्या ग्रहण करे ।' सेठ ने कहा -दहेज मैं काफी दूंगा। 'कितना दहेज दोगे ? ' 'एक लाख रुपये ' मंत्री ने कहा, 'मेरे सेठ ! किसे देने की बात करते हैं ?' सेठ ने कहा , तो आप कहिए । मंत्री कहता है 'दस लाख रुपये | उसके बिना तो राजा साहब को मनाना मुश्किल है ।' सेठ ने हा भी भरी । मंत्री ने मानो राजाने कठिनाई से स्वीकार किया हो ऐसे समझाकर सेठ पर
११९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org