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अहसान चढ़ाया । शादी निश्चित हुई और रु.१० लाख के दहेज के साथ कुमारी को राजा के साथ ब्याहा गया ।
युवक झुरता है :___ यहाँ तो बात निपट गई । परन्तु वह बखेड़ा करनेवाला उम्मीदवार युवक, वह कैसे चुप रहे ? उसे इस कन्या से और कन्या को उससे बहुत प्रेम था । अतः वह युवक तो तरस रहा है कि, हाय ! यह कन्या हाथ से गयी, अब मैं उसका संपर्क कैसे साधू ?
| विषय की वासना और त्वचा का प्रेम बहुत बुरे हैं|
ये जीव को अंध बना देते है । इनकी लत के कारण जो कर्म किये जाते हैं उनके पीछे कैसी भयंकर बरबादी है यह देखने नहीं देते । ये तो शराब के नशे की तरह जीव को उन्मत्त-मूर्छित सा कर देते हैं । उसके बाद यथेच्छ पापाचरण, हिंसा दि पाप, माया-प्रपंच, मद आदि कई दोषों-दुष्कृत्यों का सेवन करवाते है।
ऐसी वासना और स्नेह सद्बुद्धि को जहर देते हैं।
सद्बुद्धि को नष्ट कर देते है | मानव अवतार में भी उसकी सदबुद्धि को इस की ओर से चुनौती (चेलेंज) है कि तेरी क्या मजाल कि तू यहाँ उठ सके अथवा रह सके ? रावण सीता के प्रति वासनावश सद्बुद्धि खो बैठा । आर्द्रकुमार को पूर्व भव की स्त्री जो यहाँ (इस भव में) कन्या बनी थी, उसके प्रति प्रेम उभर आया तो उसने इस प्रेम की खातिर चारित्र भी छोड़ दिया जो महावैराग्य से लिया था। वासना और प्रेम जीव को अशक्त-मुर्दार और निःसत्व-सारहीन बना देते हैं । __वासना और प्रेम आगे जाकर तामसी-अतितामसी बनाते हैं । राजा भर्तृहरि पिंगला में मूढ बना था , तो उसने सच्ची सलाह देनेवाले छोटे भाई को देश निकाला दिया । राजा प्रदेशी सूर्यकान्ता रानी के प्रेम में अन्धा और नास्तिक बना, स्वयं वासना और प्रेमके आवेश के कारण उसने धर्म की बात करनेवाले किसी भी योगी-साधु-सन्यासी को नगर में प्रवेश करने की मनाई कर दी । यह क्या है ? अति तामस-भाव । वासना और विषय-प्रेम दूसरा क्या देंगे ? स्त्री के वेश में :
बस, यह युवक भी ऐसा विषयान्ध, वासना मूढ है और उस रानी बनी युवती पर अब भी अंध-प्रेम के आवेश में ऐसा खिंचता है, कि उससे मिलने-मुलाकात
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