Book Title: Karnanuyog Praveshika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ १० reafमिक सम्यक्त्वमें गुणस्थान करण करणलब्धि करणानुयोग कर्म कर्मके भेद कर्मको अवस्थाएँ aar उत्कृष्ट स्थितिबन्ध कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध कर्मी बन्धयोग्य प्रकृतियाँ कर्मको उदययोग्य प्रकृतियाँ Sairat are प्रकृतियां कर्मभूमिज तिर्यञ्च के तीस भेद कर्मभूमि कर्मभूमि कितनी कषाय कषायके भेद कषाय में काण्डक 'गुणस्थान काय कार्मणका योग कार्मणका प्रयोग किसके कालानुयोग में किसका कथन किन गुणस्थानों में कौन ज्ञान किन गुणस्थानों में कौन संयम किन गुणस्थानों में कौन लेश्या किन गुणस्थानों में कौन दर्शन किस गुणस्थान से किस गुणस्थानमें गमन किस गुणस्थान में मरण Jain Educationa International विषयानुक्रमणी प्रश्नांक ३७८ २ ३६२ १ ४३७ ४३८ ५३१ ५.१ ५४८ ६०५ ६०६ ६०७ १४६ ६० ६१ २८४ २८५ २८६ ७३८ २२८ २५६ २६४ २९३ ३२६ ३३७ ३४८ ३४५ १३८ १३६ प्रश्नांक १४० किस गुणस्थान में मरकर किस गति में गमन किन अवस्थाओं में मरण नहीं १४१ किस गतिमें कितने सम्यग्दर्शन ३८० किस गतिमें कितने गुणस्थान २०४ किन प्रकृतियोंको बन्ध व्युच्छित्ति उदयव्युच्छित्तिके पश्चात् ७०८ किन प्रकृतियोंको बन्ध तथा उदयव्युच्छित्ति एक साथ ७०९ किन प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्ति बन्धव्युच्छित्ति के पश्चात् ७१० किस जीव के कितनी पर्याप्तियां १६६ किस जन्मवालोंकी कौन योनि १७७ किस योनि से कौन उत्पन्न होता है १७४ किन जोवोंके कौन जन्म १८४ किस जीव के कितने प्राण किस इन्द्रियका कैसा आकार किन जीवोंके कौन लिंग किन जीवोंके कितनी इन्द्रियां किन जीवों में कौन वेद किस जीवका किस नरकमें जन्म ५८ किस जीवका किस स्वर्ग तक जन्म ८२ कुअवधि ज्ञान कुमति ज्ञान कुश्रुत ज्ञान कुब्जक संस्थान कृतकृत्यवेदक केवलज्ञान केवलदर्शन केवली के मनोयोग केवली समुद्घात क्यों १६२ २२५ १८६ For Personal and Private Use Only २२६ २८३ ३२५ ३२३ ३२४ ४८१ ३७४ ३२२ ३४४ २५१ २७५ www.jainelibrary.org

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