Book Title: Karmpath
Author(s): Premnarayan Tandan
Publisher: Vidyamandir Ranikatra Lakhnou

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Page 36
________________ सोचा था उसने, होगा आदेश जूझने का रणभूमि में, काटने का निज शत्रुओं को; अरमान निकल सकेगा धधकता-सा विनाशकारी मूल से मुखीज्वाला की ज्वाला तरल-सा । खिन्न हो किञ्चित् बोला पिता से-] कच सिखाएंगे रिपु को ही विद्या-सञ्जीवनी वे, काटेंगे हाथ से डाल अपनी क्या स्वयं ही ? [ मौन मुस्कराहट को गर्वमयी श्राभा ... क्षण एक को छाई मुख पर प्राचार्य के .. बोले वे मुदित स्वर में--].... सुरगुरु सिद्धि यही विद्या की। [ शङ्का की फिर पुत्र ने---] कच हानि सहकर भी? . सुरगुरु गुरु-ऋण चुकाना है बढ़कर हानि निज से; महती मनुष्यता सिखाती यही है हमें ।

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