Book Title: Karmpath
Author(s): Premnarayan Tandan
Publisher: Vidyamandir Ranikatra Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ ( ८६ ) मालती तुम्हारा भी समर्थन करती हूँ मैं बहन ! इस लू-धूप में कीर्तन का आनंद लूटने से मुझे तो किनी ठंडी जगह में एक नींद ले लेना कहीं ज्यादा सुखदायी मालूम पड़ता है। [निरंजना और कांति दोनों हँस पड़ती हैं। कांति की हँसी का स्वर निरंजना से हल्का रहता है।] निग्जना परंतु अपने सुख के चाह दूसरे पर लादना बुरा है । इनको क्यों रोक लिया भैया के यहाँ जाकर कीर्तन का सुख लूटने से ? मालती __मैंने रोका कहाँ ? मैं तो इतना कह गयी थी कि जब तक मैं न श्रा जाऊँ तब तक न जाना वहाँ। अब जा सकती हैं ये । तुम जा रही हो वहीं ? निरंजन कहाँ ? भैया के कीर्तन है भी ? । ( रहस्यपूर्ण ढंग से हँसकर ) इसी से तो रोक गयी थी इन्हें । महरी को भेजकर पुछवाया था उनसे कि कितनी देर है कीर्तन में । सो उसने तो.......... कांति क्या कहा उसने

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129