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( हद )
[ घड़ी में चार वजते हैं। निरंजना और मालती उठ खड़ी
होती हैं ।]
निरंजना
अब आज्ञा दीजिए; फिर दर्शन करूँगी ।
राजीव
( हाथ जोड़कर ) धूप में कष्ट न कीजिएगा ।
मालती
( दो पत्रिकाएँ उठाकर ) इन्हें लिये जाती हूँ । सबेरे दे जाऊँगी। आप तो नहीं पढ़ेंगे ?
राजीव
बाद को देख लूँगा । ले जाइए आप ।
[ दोनों जाती है। कांति उन्हें पहुँचाने के लिए बाहर तक जाती है। राजीव शची से लेकर पानी पीता है; फिर लेट जाता है ! कांति लौटकर पलंग के पास आती है। राजीव की आँखें बंद हैं। कांति झुककर सर पर हाथ रखती है । ]
कांति
कैसा जी है ?
राजीव
बिलकुल ठोक है । अब चली जाओ कीर्तन में शची को लेकर । ( चारो ओर देखकर ) बंडल कहाँ गया ? लाये नहीं वे लोग ?