Book Title: Karmpath
Author(s): Premnarayan Tandan
Publisher: Vidyamandir Ranikatra Lakhnou

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Page 122
________________ ( १२२ ) ईसा सम्राट मुझसे अप्रसन्न हैं और ये बेचारे उनके सेवक हैं । सम्राट को आज्ञा का पालन करने यहाँ आये हैं, न मेरा कोई अपराध है और न इनका ही। मरियम (सेनानायक से) मेरे लाल को न ले जाकर मुझे बंदी बना लो तो क्या तुम्हारे सम्राट का क्रोध शांत न होगा ? सेनानायक हमें इन्हीं को लाने की आज्ञा मिली है। मरियम तो मुझे भी ले चलो इसके साथ-साथ । सम्राट से इसके अपराध की क्षमा माँग लूँगी मैं । ईसा माता जो, कोई अपराध नहीं किया है मैने । दीन-दुखियों से प्रेम करना, उनको सेवा करना, उनके अधिकार बतलाना यदि अपराध है तो निश्चय ही मैं अपराधी हूँ। और भारी से भारी दंड मुझे मिलना चाहिए । हँसते - हँसते मैं उसे स्वीकार कर लूँगा। मरियम हाय बेटा ! राजा कितना हत्यारा है ! अनगिनती नागरिकों की हत्या, धर्म-पिता की हत्या और तुझे भी उसने.." (विलखती है)। Damanna .

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