Book Title: Karmpath
Author(s): Premnarayan Tandan
Publisher: Vidyamandir Ranikatra Lakhnou

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Page 110
________________ मुझे भी पकड़ा अपनी बलि देनी होगी । आपको पकड़ाने और नीच होगा इतना ? ( ११० ) ईसा "अपने देश के उद्धार के लिए मुझे दूसरा शिष्य 'देश के उद्वारक को ? कौन कृतघ्न ईसा वत्स, वाणी को वश में करो। जो होना होगा हो हो जायगा । भविष्य की चिंता करके अपने वर्तमान को नष्ट न करो। हाँ तो, ( भारतीय से पूर्ववत् प्रसन्नचित्त होकर ) तुम्हें देखते ही भारतीय प्रवास की सारी घटनाएँ जैसे मेरे सामने घूमने लगती हैं । भारतीय इतनी जटिलताओं में रहकर भो तुम उन दिनों की बातें भूले नहीं ? ईसा भूलूँगा कैसे ! मैं तो समझता हूँ कि सभ्यता क्या है, सहृदयता क्या है, मानवता क्या है, यह सब सीखने के लिए हमें भारत जाना होगा। मैंने वहाँ रहकर जो कुछ सोखा था उसकी परीक्षा देना अभी शेष है। तब क्या उस देश को हम कभी भूल सकते हैं ?

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