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मालती तुम्हारा भी समर्थन करती हूँ मैं बहन ! इस लू-धूप में कीर्तन का आनंद लूटने से मुझे तो किनी ठंडी जगह में एक नींद ले लेना कहीं ज्यादा सुखदायी मालूम पड़ता है।
[निरंजना और कांति दोनों हँस पड़ती हैं। कांति की हँसी का स्वर निरंजना से हल्का रहता है।]
निग्जना परंतु अपने सुख के चाह दूसरे पर लादना बुरा है । इनको क्यों रोक लिया भैया के यहाँ जाकर कीर्तन का सुख लूटने से ?
मालती __मैंने रोका कहाँ ? मैं तो इतना कह गयी थी कि जब तक मैं न श्रा जाऊँ तब तक न जाना वहाँ। अब जा सकती हैं ये । तुम जा रही हो वहीं ?
निरंजन कहाँ ? भैया के कीर्तन है भी ? ।
( रहस्यपूर्ण ढंग से हँसकर ) इसी से तो रोक गयी थी इन्हें । महरी को भेजकर पुछवाया था उनसे कि कितनी देर है कीर्तन में । सो उसने तो..........
कांति क्या कहा उसने