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मालतो (निरंजना की ओर देख कर ) क्या बताऊँ, कुछ समझ में नहीं आता कि कहाँ तक उसकी बात ठीक है।
निरंजना (फीकी हँसी हँसती हुई लज्जित सी ) संकोच मत करो कि सेठ जी भाई हैं मेरे । मुझे मालूम हैं उनकी करतूतें ।
कांति
(किंचित भयभीत-सी, परंतु उत्सुकतावश ) क्या हुआ? क्या कहा उन्होंने ?
निरंजना रोक लिया होगा उसको और क्या करते ?
कांति
ऐं ? क्यों ?
निरंजना क्या कहूँ ?..."महरी - सेठ जी ...
[ कांति साँस रोककर उसकी बातें सुनना चाहती है; निरंजना कभी कांति की ओर देखती है, कभी निगाह नीची कर लेती है। मालती की ओर देखने का उसे साहस नहीं होता । उसका चेहरा फीका पड़ जाता है।]
निरंजना मेरा संकोच कर रही हो तुम ?