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( ११ )
मालती
नहीं - - सेठ जी ने कहलाया उससे कि जल्दी ही कोर्तत शुरू होगा । लोग आने वाले हैं ।
निरंजना
तुम छिपा रही हो कुछ, बहन, तुम्हारी आँखें कह रही हैं । [ मानती कुछ लज्जित हो जाती है । कांति कभी उसकी ओर देखती है, कभी निरंजना की ओर । ]
मालती
छिपाऊँगी तुमसे ? "कहूँ भी कैसे ? इससे ही सब समझ लो कि सेठ जी ने उसे रुपया दिया, कहा- जल्दी | वि कर लाना मालकिन को ।
[ मालती जल्दी से कह जाती है । उसका स्वर धीरे धीरे धीमा होजाता है । कांति के माथे पर पसीना आ जाता है; वह स्वयं लज्जित सी हो जाती है। निरंजना का सर भी झुक जाता हैं ।
इसी समय दो आदमियों का सहारा लिए बेहोश से आँख मूँदे राजीव का प्रवेश । तीनों स्त्रियाँ हड़बड़ाकर खड़ी होती हैं । ] निरंजना और मालती
( सम्मिलित स्वर में ) क्या हुआ इन्हें ?
एक सहायक
गर्मी से जरा चक्कर आ गया है। घबड़ाएँ नहीं आप | दसपंद्रह मिनट में ठीक हो जायँगे । लिटा दीजिए आराम से इन्हें ।