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(६२ ) [ मालती लपककर पलँग बिछा देती है। राजीव को सहारा देकर उसपर लिटा दिया जाता है । निरंजना पंखा लेकर हाँकने लगती है । कांति पलँग के समीप हत्बुद्धि-सी खड़ी रह जाती है।
भीतर से शची दौड़ती हुई अाती है। पिता को पलंग पर पड़ा देखकर घबड़ा जाती है।]
शची अरे ! क्या हुआ पिता जी को ?
दूसरा सहायक ले बेटी, यह दवा इन्हें पिला दे। और आराम से लेटा रहने दो कुछ देर, अभी ठीक हो जायँगे । ( स्त्रियों की ओर देखकर ) जरा सी गरमी चढ़ गया है दिमाग पर इनके ।
पहला सहायक । (एक बंडल शची को देकर ) ले बेटी, यह बंडल इनका है . आराम से लेटे रहें ये ; अभी ठीक हो जायँगे ।
मालती बड़ा कष्ट हुआ आप लोगों को। इस कृपा के लिए हम सदैव कृतज्ञ रहेंगे आपके।
पहला सहायक (हाथ जोड़कर ) इसमें कष्ट की क्या बात है ! यह तो धम था हम लोगों का। आप घबड़ाएँ नहीं ; अभी उठकर आपसे बातें करेंगे ये।