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________________ ( ६३ ) दूसरा सहायक (हाथ जोड़कर ) अच्छा, अब आज्ञा दें। [ दोनों 'नमस्ते' करके जाते हैं। मालती आँगन की ओर का दरवाजा बंद कर देती है। निरंजना अब भी हवा कर रही है । कांति मूतिवत् खड़ी है ; समझ नहीं पाती कि क्या करे । शची पलँग के पैताने खड़ी है । वंडल उसके हाथ में है। ] निरंजना ( धीरे से ) गरमी और लू है भो ता गजब की। मेरा तो यहाँ तक आते-अ ते जैसे दम निकल गया था। ___ मालती और फिर ये तो कहीं आते-जाते नहीं लू धूप में। जो निकलता हो, उसकी आदत बनी रहे। निरंजना आज न जाने क्यों बाहर गये । ( कांति से ) इन्हें बाहर मत जाने दिया को दोपहर को। [ कांति कुछ उत्तर नहीं देती ; दृष्टि बचाकर शची की ओर देखती है और संकेत से चुप रहने को कहती है।] कांति जरा सा पानी दिया जाय ? मालती अभी मक जागो । पहले दवा दे दो।
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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