________________
( ६४ )
कांति शची, प्याली तो ले आ।
[शची जल्दी से अलमारी खोलकर प्याली लाती है और हाथ का बंडल वहीं रख पाती है । कांति सुराही से गिलास में जल लेकर निरंजना और मालती की सहायता से दवा पिलाती है। ]
निरंजना ( मुस्कराकर कांति से ) बम, अभी ठीक होते हैं ये। तुम्हारे हाथ की दवा अमृत का काम करेगी।
[ मालती भी मुस्करा देती है। कांति हँसकर कुछ लजा जाती है। शची प्याली धोकर अलमारी में रख देती है। कांति निरंजना के पास जाकर पंखा लेना चाहती है। निरंजना नहीं देती ! ]
निरंजना इतनी सुकुमार नहीं हूँ कि मेरे हाथ थक जायँगे। [ कांति और मालती मुस्कराने लगती हैं। इसी समय राजीव आँखें खोलकर सबकी ओर देखता है। निरंजना पर दृष्टि पढ़ते ही हाथ जोड़कर नमस्ते करता है । निरंजना मुस्कराकर उत्तर देती है।]
राजीव पिने कैसे कष्ट किया इस समय ?
निरंजना मैं आयी थी यह देखने कि लू-धूप में भी आप घर पर बैठते हैं या नहीं ?