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निरंजना ( किंचित संकोच से ) देखो, हँसी में मत उड़ानो बात मेरी। मैं पूछती हूँ वह बताओ पहले।
कांति
अरे, यह भी काई पूछने की बात है ? उनका सा पति पाकर कोई भी स्त्री अपना भाग्य सराहेगी।
निरंजना ___ मैं सबकी नहीं, सिर्फ तुम्हारी बात जानना चाहती हूँ--तुम सुग्वी हो या नहीं ?
कांति
अपनी ही बात कह रही हूँ। सुवी न होती तो इस तरह मोटी ताजी रहती ; हँसती-खिलता तुम्हारे सामने ?
निरंजना ईश्वर तुम्हें सदा स्वस्थ और सुखी रक्खे ; परंतु तुम्हार। म्पष्ट उत्तर न देना ही यह सूचित करता है कि तुम'.. तुम उनसे संतुष्ट नहीं हो।
कांति (किचित् उदास होकर ) तो इन लेखों में वे अपने घर की ही ब तें लिखा करते हैं ? |
निरंजना किन लेखों में ? यह लेख तो अब देखा है मन ; पढ़ कहाँ पायी हूँ अभी ?