Book Title: Karmpath
Author(s): Premnarayan Tandan
Publisher: Vidyamandir Ranikatra Lakhnou

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ ( ८६ ) निरंजना ( किंचित संकोच से ) देखो, हँसी में मत उड़ानो बात मेरी। मैं पूछती हूँ वह बताओ पहले। कांति अरे, यह भी काई पूछने की बात है ? उनका सा पति पाकर कोई भी स्त्री अपना भाग्य सराहेगी। निरंजना ___ मैं सबकी नहीं, सिर्फ तुम्हारी बात जानना चाहती हूँ--तुम सुग्वी हो या नहीं ? कांति अपनी ही बात कह रही हूँ। सुवी न होती तो इस तरह मोटी ताजी रहती ; हँसती-खिलता तुम्हारे सामने ? निरंजना ईश्वर तुम्हें सदा स्वस्थ और सुखी रक्खे ; परंतु तुम्हार। म्पष्ट उत्तर न देना ही यह सूचित करता है कि तुम'.. तुम उनसे संतुष्ट नहीं हो। कांति (किचित् उदास होकर ) तो इन लेखों में वे अपने घर की ही ब तें लिखा करते हैं ? | निरंजना किन लेखों में ? यह लेख तो अब देखा है मन ; पढ़ कहाँ पायी हूँ अभी ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129