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[ डाकिया अावाज देता है । शची भीतर से दौड़ती हुई श्राती है । डाक लेकर पिता जी की डेस्क पर रख देती है। कुछ कार्डलिफाफे हैं और दो-तीन पत्र-पत्रिकाएँ। शची एक बालोपयोगी पत्रिका पहचानकर खोलती है और मनचाही चीज पाकर प्रसन्न हो जाती है। पत्रिका लिए वह भीतर चली जाती है ।
निरंजना शेप पत्रिकाएँ लेकर देखती है । एक जगह उसे राजीव . का चित्र दिखायी देता है । वह उसे ध्यान से देखने लगती है।
कांति चिट्ठियों के पते देख-देखकर अलग रखती जाती है। किसी को पढ़ने का प्रयत्न नहीं करती।]
निरंजना इसमें तो लेखक जी का चित्र है ! देखा तुमने ?
कांति (चिट्ठियों को एक तरफ रखती हुई, विशेष उत्साह न दिखाकर ) होगा, छपता ही रहता है।
निरंजना (पत्रिका पर दृष्टि गड़ाए हुए ) और भी पत्रों में छपता है ?
कांति ( पहले के स्वर में ) हाँ, प्रतिमास कइयों में छपा करता है।
निरंजना बड़ा गर्व होता होगा इन चित्रों को देखकर तुम्हें ? ( कांति कुछ उत्तर नहीं देती, फिर पत्र देखने लगती है ) लेखक जी का