________________
( ३३ )
भूल जाओ तुम कुछ दिन के लिए -- हाँ, केवल थोड़े दिन के लिये ही, अपने को, अपनेपन को, निज सुख को, ऐश्वर्य को । नश्वर बस मानों संसार के वैभव को, अथवा क्षणिक, चञ्चत अति, भूलो उसे ।
सुनो करुण क्रन्दन अपनी माताओं का, नाद हृदय विदारक दर्जितों का;
-
बहते देख चुके हो अनेक बार आँसू खून के; अब तो उठो, कर्तव्य निज सोचो स्वदेश के प्रति तुम । माता ताक रही है। ओर तुम्हारी ही आज आँसू भरी आँखों सेआशा हो उसकी, तुम ही आशा के प्राण हो सन्देश है मेरा तुमसे, नवयुवकों से, निज स्थदेश - प्रासाद के प्रमुख स्तंभों से ।
[ भारत के भयङ्कर युद्ध में काँप उठे ये सुन भीमनाद वर वीर भीष्म का ज्यों कौरवदल - नायक सुरश्री महा सभी, वृद्ध सिंह की गर्जना घोर सुन काँपते इठलाते बल- मद में शृगाल नव-से--- चौंक पड़ा कच यों वृद्धावेश को, काँपती वृद्ध क्रोध की प्रतिमूर्ति देख अंगार-सी ।