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मालती यह लेख पढ़ डानो तुम, तब जैसा तुम कहोगी, मान लूंगी मैं । इस समय चलने दो । ( उठ खड़ी होती है । चलते-चलते रुक कर ) और हाँ, थोड़ी देर में ही आऊँगी मैं । तब तक मत जाना तुम कीर्तन में । तुम्हें कसम है मेरी।
कांति ( उसे रोक कर ) क्यों ? बात क्या है ? तुम जाओगी नहीं, मुझे भी नहीं जाने दोगी?
मालती बताऊँगी पाकर बात सारी। [ मालती चली जाती है। कांति पत्रिका लिए डेस्क के पास आकर बैठती है ; परंतु लेख पढ़ना शुरू न करके कवर का चित्र देखने में लीन हो जाती है।
शची दो पान लाकर माता को देती है। स्वयं अपनी जगह पर न बैठकर सुराही से पानी पीती है। फिर कोने में जाकर अपली चप्पल उठाकर कपड़े से पोछने लगती है। कांति का ध्यान बट जाता है । पत्रिका से हवा करते हुए वह उसकी ओर देखती।]
शची कीर्तन में तो प्रस द मिलेग दोना भर". - सबके यहाँ बटता है, वे तो खूब अमीर हैं।
कांति हाँ, बटेगा।