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सौंपा गया। श्री सुरानाजी गुरुदेव श्री के साहित्य एवं विचारों से अतिनिकट सम्पर्क में रहे हैं । गुरुदेव के निर्देशन में उन्होंने अत्यधिक श्रम करके यह विद्वत्तापूर्ण तथा सर्वसाधारण जन के लिए उपयोगी लिन तैयार किया है। एक दोर्घकालीन अभाव की पूर्ति हो रही है। साथ ही समाज को एक सांस्कृतिक एवं दार्शनिक निधि नये रूप में मिल रही है, यह अत्यधिक प्रसन्नता की बात है ।
मुझे इस विषय में विशेष रुचि है। मैं गुरुदेव की तथा संपादक बन्धुओं को इसकी मम्पूर्ति के लिए समय-समय पर प्रेरित करता रहा। चार भागों के पश्चात् यह पांचवां भाग आज जनता के समक्ष आ रहा है। इसकी मुझे हार्दिक प्रसन्नता है ।
यह पांचवा भाग पहले के चार भागों से भी अधिक विस्तृत बना है, विषय गहन है, गहन विषय की स्पष्टता के लिए विस्तार भी भावश्यक हो जाता है। विद्वान सम्पादक बंधुओं ने काफी श्रम और अनेक ग्रन्थों के पर्यालोचन से विषय का तलस्पर्शी विवेचन किया है। आशा है, यह जिज्ञासु पाठकों की ज्ञानवृद्धि का हेतुभूत बनेना । द्वितीय संस्करण
आज लगभग १३ वर्ष बाद "कर्मग्रन्थ " के पंचम भाग का यह द्वितीय संस्करण पाठकों के हाथों में पहुँच रहा है। इसे अनेक संस्थाओं ने अपने पाठ्यक्रम में रखा है। यह इस ग्रन्थ की उपयोगिता का स्पष्ट प्रमाण है। काफी समय से ग्रन्थ अनुपलब्ध था, इस वर्ष प्रत्रर्तक श्री रूपचन्दजी महाराज साहब के साथ मद्रास चातुर्मास में इसके द्वितीय संस्करण का निश्चय हुआ, तदनुसार ग्रन्थ पाठकों के हाथों में है ।
आज पूज्य गुरुदेवश्री हमारे मध्य विद्यमान नहीं हैं, किन्तु जहाँ भो हैं, उनकी दिव्य शक्ति हमें प्रेरणा व मार्गदर्शन देती रहेगी । इस शुभाशापूर्वक पूज्य गुरुदेवश्री की पुण्य स्मृति के साथ """"
- उपप्रवर्तक सुकन मुनि