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प्रस्तावना (लेखकीय) पाश्चात्य जगत के प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री जान डयूई (John Dewey) ने अपने जीवन भर के अनुभव का सार इन शब्दों में व्यक्त किया
"Childis not a blank slate on which we can write whatever we wish".
(चाइल्ड इज नौट ए ब्लेंक स्लेट,ऑन हिच वी कैन राइट व्हाटेवर वी विश।) - बालक, कोरी स्लेट (तख्ती) नहीं है, जिस पर अपनी इच्छानुसार हम जो चाहें, लिख सकें।
आगे वह कहता है-हम अधिक से अधिक इतना ही कर सकते हैं, कि उसके चारों ओर समुचित वातावरण निर्मित कर दें, उसके जीवन सुधार और चरित्र निर्माण के लिए अच्छी शिक्षा का प्रबन्ध कर दें, लेकिन वह उसे किस रूप में ग्रहण कोमा होहमा निश्चित नहीं कर सकते, बालक में कुछ अदृष्ट ऐसी शक्तियाँ छिपी होती हैं, जो उसकी ग्रहण-क्षमता और उसके जीवन विकास की धारा को निर्धारित करती है कि वह फूल के रूप में विकसित होगा अथवा शूल बन जायेगा। . . डयूई ने जिसे बालक की ग्रहण शक्ति कहा है, उसे कर्मविज्ञान की भाषा में आम्रव कहा जा सकता है।
आम्रव
जैन दर्शन के नव तत्त्वों में आसव भी एक तत्त्व है। योगों-मन-वचन-काय तथा करणों कृत-कारित-अनुमोदन रूप में जो आत्म-प्रदेशों में परिस्पन्दन-हलनचलन होता है, उसके द्वारा जो कर्मों का आकर्षण होता है, वह आम्रव है। सरल शब्दों में, कर्म परमाणु पुंजों का आत्मा की ओर आकर्षित होना, बहना, खिंचना आम्रव-कर्मासव है। . आम्रव शब्द का निर्माण सू धातु से हुआ है। जिसका अर्थ है-बहना, इसी कारण कर्मविज्ञान में आग्नयों को कर्मागमन के स्रोत अथवा द्वार कहा गया है। जिस प्रकार जलाशय में मोरियो (स्रोतों) से जल आता है, इसी प्रकार आनवों द्वारा आत्मा में कर्मों का आगमन होता रहता है।
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