Book Title: Karan Kutuhalam
Author(s): Bhaskaracharya
Publisher: Kshemraj Krishnadas
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________________ (82) करणकुतूहलम् / / अथ गतगम्यपिण्डान्तरेण गुणिताच्छेषादेकादशभिर्भक्तेन गतपिण्डोयु गम्ये पिण्डेऽधिक सति गम्ये पिण्डे हीने रहितः एवं संस्कृते गते पिण्डे खरसैर्भते लब्धं मध्यमलम्बनं प्राग्वत, तदुन्नतज्यानहतं नखेन्दुभिर्भक्तमित्यादिना कार्यमेवं सकदेवैक वारमपि भवति, अतो लम्बनसंस्कृततिथ्यन्तकालीनलमान्नतांशादिक्रमेण नतिः साध्या यथा दर्शान्तकालीनवित्रिभलमार्कयोरन्तरम् 26 / 42 / 30 भुजभागाः६६ एकादशभक्ता लब्धं 6 षष्ठो गतः 240 गम्यः 236 पिण्डयोरन्तरेण 4 शेषांशादि 0 / 42 / 27 गुणितम् 2 / 50 एकादशभक्तं लब्धेन 0 / 15 / 27 गतपिण्डे गम्यपिण्डस्य हीनत्वादीनम् 239 / 44 / 33 षष्टिभक्ते लब्धं मध्यमलम्बनम् 3 / 59 वित्रिभन्मोत्पन्नोन्नतज्यया 110 / 35 गुणितम्४४०।२९ नखेन्दुभक्तं जातं घव्यादिलम्बनं सकस्थिरं रवेः सकाशादधिकं वित्रिमं तस्माद्धनम् // 40 दर्शान्ततिथौ 29 / 24 युक्तं जातः स्थिरो ग्रहणस्य मध्यकालः 33 / 4 नतिरन्यलमादिति मध्यग्रहणसमयिकः 33 / 4 सूर्यः 3 / 0 // 38 // 37 लमम् 9 / 16 / 26 / 7 वित्रिभम् 6 / 16 / 26 / 7 कान्तिः 6 / 46 / 37 नतांशा याम्याः 31 / 9 / 40 ज्या 61 // 58 स्वद्वादशांशेन 5 / 9 युक्ता 67 / 7 अष्टमक्ता८।२३इयं नतिः सकप्रकारेण लम्बने कत उपयोगिनी ज्ञेया // 5 // Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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