Book Title: Karan Kutuhalam
Author(s): Bhaskaracharya
Publisher: Kshemraj Krishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ (90) करणकुतूहलम् / स्थिरमध्यग्रहणकालयोरन्तरं स्पष्टमोक्षस्थितिः।अथ सकलकारार्थ मध्यस्थितियुक्तगणितागततिथ्यन्तः३१।४०एतत्कालीनवित्रिभसूर्यान्तरम् 2 / 19 / 34 / 26 अंशाः 79 अवाप्ता ७पिण्डः 236 शेषम् 2 / 34 / 26 लम्बनम् 3 / 53 उन्नतज्यया 105 / 55 गुणितं नखेन्दु 120 भक्तम् 325 स्पष्टं सकत्पूर्ववस्थितिः 31 / 40 युक्तम् 35 / 5 सकत्मकारेण स्थिरो मोक्षकालः, अस्मान्नतिः शरश्च साध्यः / अथ स्पर्शकालीनलम्बनं यथा दिनोदयाद्गतघटी 30 / 21 समये स्पर्शः, अत्र युदलगतघटीनामित्यादिना नतं यथा दिनदलम् १६६४३गतघटी३०।२१अनयोरन्तरं नतम् 13 // 38 पश्चिमे खाडा 90 हतम् 1227 / दिनार्धन भक्ता 73 / 23 / 59 नतांशाः एषां ज्या 114 / 43 अनयाक्षांशाः 24 / 35 / 9 गुणिताः 2820 / 19 / 36 त्रिज्यया लब्धम् २३।३०।९पश्चिमनतत्वाद्दक्षिणे इदमाक्षजं वलनम् 23 // 30 // 9 // अथायनवलनम् // स्पर्शकालीनसूर्यः 3 / 0 / 26 / 2 सायनः 3 / 18 / 33 / 22 भुजः२।११।२६।३८कोटिः०। 18 / 33 / 22 ज्या 3816 बाणे 5 भक्ता लब्धम् 7 / 37 / 12 सायनसूर्यो दक्षिणायने तेन दक्षिणाक्षजम् 23 / 30 / 9 दक्षिणायनम् 7 / 37 / 12 अनयोरेकदिक्त्वाद्योगः 317 21 याम्योऽस्य ज्या 61 // 54 अनया मानक्याईम् 10 // 42 गुणितम् 662 / 19 त्रिज्यया 120 भक्तं लब्धं स्पष्टवलनं याम्यम् 5 / 32 प्राग्यासमोक्षे विपरीतदिक इति रवः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160