Book Title: Kaise Kare Is Man Ko Kabu Author(s): Amarmuni Publisher: Guru Amar Jain Prakashan Samiti View full book textPage 9
________________ मन एव मनुष्याणां, कारणं बन्ध मोक्षयोः । बन्धाय विषयासक्तं, मुक्तयै निर्विषयमनः।। अर्थात् हमारा जो मन है वह बंधन का कारण भी है और मुक्ति का भी। जब ये मन विषय-विकारों के प्रति आसक्त होता है तो साधना में बाधक बन जाता है और जब ये वासना से ऊपर उठ कर उपासना में लग जाता है तो यही मन साधक यानि सहायक बन जाता है। आएं इसे एक दृष्टांत द्वारा समझें: मगधाधिपति राजा श्रेणिक (बिंबसार) प्रभु महावीर के दर्शन करने जा रहे थे, रास्ते में उन्होंने एक मुनि को ध्यान मग्न देखा। मन के भावों द्वारा रथ पर बैठे-बैठे ही उस ध्यानस्थ मुनि की कठोर साधना के प्रति मस्तक झुकाया और पहुँच गए भगवान महावीर के दरबार में, वंदन किया, धर्मोपदेश सुना, फिर जिज्ञासा रखी-भगवन ! मैंने रास्ते में एक ध्यान में लीन मुनि के दर्शन किए थे, यदि वे काल धर्म (मृत्यु) को प्राप्त हो जाएँ तो कौन सी गति में जाऐंगे? - प्रभु महावीर ने फरमाया-पहली नरक में । प्रभु! वो महामुनि नरक में ? सोचा-हो सकता है मेरे सुनने में गलती हो गई हो, फिर पूछा तो उत्तर मिला-दूसरी नरक में, फिर तीसरी में, फिर चौथी में....करते-करते सातवीं नरक तक पहुंच गए। कारण कि प्रभु महावीर उस मुनि कीPage Navigation
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