Book Title: Kaise Kare Is Man Ko Kabu
Author(s): Amarmuni
Publisher: Guru Amar Jain Prakashan Samiti

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Page 55
________________ ग्रंथी ने सोचा- बात तो ठीक है। उसने उस श्रद्धालु भाई को बुलाया और पूछा कि - मैं इस तरह से आपके बारे में शिकायत सुन रहा हूँ, क्या ये ठीक है ? वो व्यक्ति भी बड़ा पक्का था, कहने लगा- महाराज! ठीक-गलत तो जाने दो, मुझे तो गुरूवाणी का जो वाक्य आपने दिया था, मैं तो उसी को अपना जीवन मंत्र मानकर चल रहा हूँ। आपको याद होगा- मुझे आपने एक छोटी-सी पंक्ति का दान दिया था कि - गुरू सिख दे बंधन काटे। तो अब भला बताइये कि मुझे - किस बात की चिन्ता है ?मेरे बंधन तो गुरू महाराज काट ही देंगे। फिर किस बात का डर है ? ग्रंथी ने कहा - अरे भले आदमी इसमें तो कोई शक नहीं कि गुरू सिख के बंधन काटे पर जरा अगली लाईन पर भी ध्यान दे - “गुरू सिख दे बंधन काटे, गुरू दा सिख, जे विकार ते हाटे" अर्थात् गुरू शिष्य के बंधन काटता है, पर कब ? | जब शिष्य विकारों से, पापों से, बुराईयों से हट जाता है। वो व्यक्ति ये सुनकर कहने लगा कि क्या सारा उपदेश मेरे लिये ही है ?अगली लाईन किसी और को दे देना। उस ग्रंथी ने | अपना माथा ठोक लिया। .) अब जरा आप ही विचार कीजिए- क्या ऐसे व्यक्तियों का कल्याण होना सम्भव है ? ग्रंथी की तो औकात (53)

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