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हमारे यहां आयुर्वेदिक और होम्योपेथिक दवाई को लोग कम पसन्द करते हैं क्यूंकि वो कुछ समय लेती हैं और अगर किसी मर्ज को जड़ से मिटाना हो तो समय लगना स्वाभाविक ही है। पर आज का जो साईंस युग है, न्यू जनरेशन है वो चाहती है कि हमें तुरन्त रिजल्ट मिल जाए और इसीलिए एलोपेथिक दवाईयों का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। मैं कोई आक्षेप या आलोचना नहीं कर रहा हूं, केवल एक एग्जाम्पल के तौर पर समझा रहा हूँ।
कुछ लोग तो यहां तक प्रश्न कर देते हैं कि - महाराज! जब हम रसगुल्ला मुँह में डालते हैं तो हमें कोई धैर्य नहीं रखना पड़ता, ना ही कोई इंतजार करना पड़ता है, उसकी मिठास तभी अनुभव हो जाती है, तो जो हम धर्म क्रियाएं करते हैं, क्या उनका फल हमें उसी समय नहीं मिल सकता ?सन्तजन कहते हैं, गीता में भी कहा है - तुम कर्म करो, फल की इच्छा मत करो, इस जन्म में सुख नहीं मिला तो काई बात नहीं, अगले जन्मों में तुम्हें स्वर्गों के दिव्य सुख प्राप्त होंगे। पर महराज! अगला जन्म किसने देखा ?
और इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी कि- जो सुख मिल रहे हैं उन्हें छोड़कर, शेख चिल्ली की तरह अगले जन्मों के सुखों के सपने देखें । महाराज! थ्योरिकल तो हम बहुत