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कुदरत ने इन्सान को दो पांव दिए हैं। वह इस बात में स्वतन्त्र है कि- चाहे वह दायां पांव उठाए या बायां पांव। लेकिन एक पांव उठाने के बाद वो पछताए कि-मुझे तो दूसरे वाला पांव उठाना चाहिए था तो उसका कोई उपाय नहीं है क्यूंकि जो कदम उठाना था वो उठा लिया और यदि दूसरा भी साथ ही उठाएगा तो गिर जाएगा।
तो मेरे कहने का भाव- इस बात में तो हम स्वतन्त्र हैं कि-अपने मन को चाहे हम अच्छे मार्ग पे लगा लें या बुरे रास्ते पर। और जो हम चर्चा कर रहे थे पिछले प्रवचन में कि- गुरू केवल राह दिखा सकते हैं, हमें बता सकते हैं कि- ये धर्म का रास्ता है और ये अधर्म का, ये पापों का रास्ता है और ये पुण्यों का, मोटी भाषा में कहूं तो- ये अच्छाईयों का रास्ता है और ये बुराईयों का। पर चलना किस राह पर है, ये फैसला तो हमें ही करना होगा। आएँ पहले एक छोटी सी चर्चा करलें, फिर आगे की बात करेंगे।
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