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ही क्या, यदि स्वयं बुद्ध, महावीर या नानक भी आ जाएं तो भी ऐसे लोगों का कल्याण हो पाना असम्भव ही है। क्यूंकि डॉक्टर चाहे कितना भी बड़ा क्यूं न हो और दवाई चाहे कितनी ही मंहगी क्यूं ना हो, जब तक रोगी दवाई का सेवन नहीं करता तब तक उसका रोग दूर नहीं हो सकता। संत-महापुरुषों की वाणी चाहे वह गीता के रूप में हो या ग्रंथ के रूप में, चाहे पुराण के रूप में हो या कुरान के रूप में, उस वाणी रूपी औषधि में हमारे कर्म रोग को दूर करने की शक्ति तो है पर वो रोग तभी दूर हो पाएंगे जब हम उसका सेवन करेंगे यानि उन शिक्षाओं तथा उपदेशों का पालन करेंगे।
तो मेरे कहने का तात्पर्य है कि - गुरू केवल गुर बता सकते हैं, उपाय सिखा सकते हैं, युक्ति समझा सकते हैं लेकिन उनका प्रयोग और उपयोग तो आपको ही करना होगा। तभी आपकी साधना सिद्धी तक पहुँच पाएगी और तभी ये मन आपको मुक्ति के उस परम द्वार तक ले जा सकेगा।
बस, आज इतना ही....
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