Book Title: Kaise Kare Is Man Ko Kabu
Author(s): Amarmuni
Publisher: Guru Amar Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ तो भूमिका को ज्यादा विस्तार न देते हुए मैं अपनी बात पर आ रहा हूँ कि - जिस प्रकार हर बीज में वृक्ष बनने की सम्भावना होती है इसी प्रकार हर आत्मा में परमात्मा बनने की क्षमता होती है। आवश्यकता है तो बस अपने इस मन को मुक्ति की राह पर मोड़ देने की । पिछले प्रवचन में हम चर्चा कर रहे थे-गुरू के प्रति समर्पित होने की। लेकिन बात केवल यही तक पूरी नहीं हो जाती। ये तो ठीक है कि गुरू पथ प्रदर्शक होते हैं परन्तु गुरू केवल राह ही दिखा सकते हैं, मार्ग ही बता सकते हैं, उस पर चलने का जो श्रम है वह तो हमें स्वयं को ही करना होगा। क्यूंकि जिस प्रकार बारिश होने पर भी वो मटके नहीं भर सकते जो उल्टे रखे हों। इसी तरह गुरू की रहमत चाहे दिन-रात बरसती रहे पर यदि कोई उस गुरू कृपा का लाभ नहीं उठाता तो फिर जीवन का कल्याण किसी अवस्था में नहीं हो सकता। किसी कवि ने इस भाव को बड़े ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है : ___“दीनी पर लागी नहीं, रीते चूल्हे फूक। गुरू बेचारा क्या करे, जब चेले में हो चूक।।" इस दोहे में कवि ने कितनी कुशलता के साथ अपनी बात प्रस्तुत की है। उसने उपमा दी कि-जैसे चूल्हे में लकड़ी ना हो या आज की भाषा में कहूं - सिलेंडर में गैस ना 51)

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72