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मन के संबंध में हमने पिछले प्रवचन में चर्चा की थी, उसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए वाणी के जादूगर, प्रवचन भूषण, प्रवर्त्तक श्री अमर मुनि जी महाराज कहते हैं- मन टिकता है, मन को टिकाना इम्पॉसिबल नहीं है, असंभव नहीं है। वो तो स्वयं कहता है आई एम पॉसिबल ।
मन काबू होता है अगर आप उसे काबू करना चाहो । सच बोलना जब हरी-हरी कन्नी के पाँच-पाँच सौ के नोट गिन रहे होते हो, तब ये कहीं भटकता है ? जब मेरी बहनें ज्वैलरी बॉक्स (गहनों की पेटी) खोल कर बैठती हैं, तब उनका मन कहीं डोलता है ?
तो माला फेरते, भक्ति करते नींद क्यूं आती है ? मन डावांडोल क्यूं होता है ? इधर उधर क्यूं भटकता है। क्यूंकि अभी हमें भक्ति में वो रस नहीं आया, वो विश्वास नहीं आया। जिस दिन आपको विश्वास आ गया, उस दिन आपका ये मन भटक नहीं सकता, गलत कर नहीं सकता । हमारा ये 'मन' इन्द्रियों और आत्मा के बीच माध्यम का काम करता है। इसे एक उपमा द्वारा समझें । जैसे एक फैक्टरी है, उसमें मालिक, मुनीम और कर्मचारी
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