Book Title: Kaise Kare Is Man Ko Kabu
Author(s): Amarmuni
Publisher: Guru Amar Jain Prakashan Samiti

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Page 36
________________ पिछले प्रवचन में हम मन के संदर्भ में चर्चा करते हुए बात कर रहे थे शुभ और अशुभ की यानि हम अपने मन के द्वारा पुण्य भी पैदा कर सकते हैं और पाप भी। इसे यूँ समझें जैसे विद्युत है, जिसे आम भाषा में हम बिजली कहते हैं, उसके द्वारा हम हीटर भी चला सकते हैं और ए.सी. भी। ऐसे ही ये मन भी एक ऊर्जा है, शक्ति है, जिसे हम अच्छाईयों में भी लगा सकते हैं और बुराईयों में भी। एक प्रेरक प्रसंग इस बात को समझने के लिए उपयोगी होगा- एक सेठ अपने मकान की छत पर टहल रहा था। एक हट्टा-कट्टा आदमी आया और उसने सेठ को नीचे आने का इशारा किया। सेठ ने सोचा-शायद कोई काम होगा। नीचे उतर कर आया, पूछा- क्या बात है ? वो कहने लगा- कुछ दो। सेठ कहता है- अरे भले आदमी कुछ मांगना ही था तो पहले बोल देता, मुझे यूं ही नीचे बुलाया। उस भिखारी ने कहा- अजी मैंने सोचा कोई सुन न ले। (34)

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