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वही शूरवीर इस मन से मात खा जाते हैं। इसीलिए तो प्रभु महावीर ने कहा है
"जो सहस सहस्साणं, संगमे दुज्जए जिणे । एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओ ।।"
एक ओर वो योद्धा है जिसने सैंकड़ों-हजारों दुर्जय संग्राम जीत लिए, दूसरी ओर वो साधक है जिसने अपने आपको जीत लिया, क्रोध, मान, माया-लोभ को वश में कर लिया, अपने मन को जीत लिया, प्रभु कहते हैंदुनियाँ को जीतने वाले योद्धा से वो साधक लाख गुणा श्रेष्ठ है जिसने अपने आप पर विजय हासिल कर ली। उसकी विजय, विजय ही नहीं ब्लकि 'परम विजय' है ।
सिकन्दर बादशाह, जिसने दुनियाँ को जीतने के लिए खून की नदियाँ बहा दी, लाखों माताओं की गोद सूनी कर दी, सुहागनों के सिंदूर उजाड़ दिए, करोड़ों बच्चे यतीम बना दिए पर जिंदगी के आखिरी मोड़ पर वो खुद से हार गया। उसके जीवन की हर जीत अंत समय हार में बदल गई ।
एक ओर अंग्रेजी शासन है, दूसरी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हैं। हम अंग्रेजी शासन से क्यूं घृणा करते हैं ? और क्यूं गांधी को याद करते हैं ? क्यूंकि अंग्रेजों ने भारतीयों के तन पर राज किया और गांधी ने लोगों के मन पर राज किया।
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