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हम चर्चा कर रहे थे कि हमें मन का गुलाम नहीं बादशाह बनना है। पर ये भी याद रखो बादशाह बनने के लिए पहले आपको गुलाम बनना होगा। आप कहेंगेमहाराज ! आप भी कमाल करते हो, कभी कहते हो बादशाह बनना है और कभी कहते हो गुलाम बनना है ? ये भी अजीब पहेली है ?
बंधुओ ! ये पहेली नहीं, ब्लकि वास्तविक्ता है। देखने में दोनों बातें आपको विपरीत लग रहीं होंगी, दोनों में विरोधाभास मालूम पड़ रहा होगा परन्तु हैं दोनों एक ही सिक्के के दो पहलु । कैसे ? आइए इसे समझें :
ये तो ठीक है कि हमें अपने मन को वश में करना है, इसका बादशाह बनना है पर मन का बादशाह बनने के लिए हमें सद्गुरू का गुलाम बनना होगा। सद्गुरू के चरणों का दास बनना होगा। अपने आपको उन चरणों में समर्पित करना होगा। अपनी हस्ती को मिटाना होगा।
जो बीज मिट्टी में अपनी हस्ती मिटा देता है वही एक दिन वृक्ष के रूप में अनंत गुणा होकर पुष्पित- पल्लवित
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