Book Title: Kaise Kare Is Man Ko Kabu
Author(s): Amarmuni
Publisher: Guru Amar Jain Prakashan Samiti

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Page 37
________________ सेठ बिना कुछ बोले चुपचाप ऊपर सीढ़ियां चढ़ गया और उसी तरह टहलने लगा। थोड़ी देर तो वो भिखारी खड़ा रहा, इन्तजार करता रहा, पर कब तक करता? आखिर थक कर फिर सेठ की तरफ देखकर हाथ फैलाए। सेठ ने इशारा करके उसे ऊपर बुलाया। भारी भरकम शरीर था उस भिखारी का, बेचारा हाँफता हुआ किसी तरह ऊपर पहुँचा, कहा-जी कुछ दो। सेठ ने कहा-मैंने कुछ नहीं देना। वो कहने लगा- कमाल है! जब कुछ देना ही नहीं था फिर बेकार ही मेरी एक्सरसाईज करवाई, ऊपर से ही मना कर देते। सेठ ने मुस्कुरा कर कहा- मैंने सोचा कोई सुन ना ले। अरे जब तू भिखारी होकर मुझे नीचे बुला सकता है तो क्या मैं दाता होकर तुझे ऊपर नहीं बुला सकता? समझे कुछ ? यही मन की अवस्था है। जब ये हमें बुराईयों में लगा सकता है तो क्या हम इसे अच्छाईयों की ओर नहीं लगा सकते ? लगा सकते हैं लेकिन केवल बातों से नहीं। इसके लिए हमें संकल्प बल को दृढ़ करना होगा। कायर नहीं कर सकते, कोई शूरवीर ही अपने संकल्प को मजबूत कर सकता है और उसे पूरा कर सकता है पर इसके लिए बहुत कुछ होमना पड़ता है, बहुत बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है तभी साधना फलित होती है और तभी सन्यास घटित होती 35

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