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फकीर ने कहा-सुन राजन! तेरे जैसी तो यूं बीती कि जब तुझे नींद आई तो पता नहीं तूं कहा पड़ा है, और मुझे नींद आई तो मुझे भी पता नहीं कि मैं कहां पड़ा हूँ। गद्दों पे कि कंकर पत्थरों पे । ये तो हुई तेरे जैसी। तेरे से बढ़िया कैसे बीती, वो भी सुन । तूं जागा तो तेरे साथ दुनियाँ की चिंता जागी, उसे सजा देनी है, उसको फांसी पे टांगना है, शत्रु पे चढ़ाई करनी है अगैरा वगैरा और मैं जागा तो मेरे साथ मेरे प्रभु का चिंतन जागा ।
राजा ने सोचा यूं ही रटी रटाई बातें बोल रहा होगा। कहने लगा-चलो महाराज! आपको महलों में ले चलूं, खूब सेवा होगी। सन्त तो पहुंचे हुए थे। सोचा इसे नशा है अपनी सत्ता का, राजा होगा अपने घर का, मैंने राजा से लेना नहीं, रंक को पल्ले से कुछ देना नहीं ।
कहने लगे- राजन! तू मेरी क्या सेवा करेगा, तूं तो मेरे नौकरों का नौकर है। अब तो बड़ी करारी चोट पहुँची राजा के अभिमान को। कहने लगा-महाराज! आपको पता है किससे बात कर रहे हो ?
संत मुस्कुराए, कहने लगे-राजन! तू मन और इन्द्रियों का बंधा है, उनका गुलाम है और वो मेरे गुलाम हैं। इसलिए कहा तू तो मेरे नौकरों का नौकर है। राजा चरणों में झुक गया। समझे ? जिसने अपने मन को जीत लिया वो बादशाहों का बादशाह हो गया।
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