Book Title: Kaise Kare Is Man Ko Kabu
Author(s): Amarmuni
Publisher: Guru Amar Jain Prakashan Samiti

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Page 22
________________ तप अग्नि का संसर्ग मिल जाए तो ये भाप बन का ऊपर उठना शुरू कर देता है, उर्ध्वगामी बन जाता है। इस मन की गति बड़ी प्रबल है। एक वैज्ञानिक अनुसंधान के अनुसार प्रकाश की गति एक सैकिण्ड में 1 लाख 86 हजार मील की है, विद्युत यानि बिजली की गति 2 लाख 88 हजार मील की है और मन की गति एक सैकिण्ड में 22 लाख 65 हजार 120 मील की है। ये तो वैज्ञानिकों का मत है। लेकिन हमारे शास्त्र, धर्म ग्रंथ तो मन की गति इससे भी तीव्रतर मानते हैं। क्यूंकि ये मन कभी स्वर्ग में पहुंच जाता है और कभी नरक की सैर कर आता है। आप कहेंगे-कैसे ? दूर जाने की आवश्यकता नहीं, आप अपने व्यवहारिक जीवन में ही देख लीजिए-बैठे होते हैं सत्संग में, मन होता है दुकान पे। यहीं बैठे-बैठे ही कभी दिल्ली पहुंच जाता है और कभी अमेरिका । आईए एक प्रेरक प्रसंग द्वारा समझे। प्रसंग भी कोई मन घडंत नहीं, 'वायु पुराण' से सबंधित है _ वृत, सुवृत नामक दो भाई, विचार करते हैंकृष्ण जन्माष्टमी आ रही है। अपने नगर में तो हर वर्ष ही देखते हैं, इस बार प्रयाग राज की प्रसिद्ध जन्माष्टमी देखनी चाहिए। चल पड़े और चलते-चलते पहुँच भी गए प्रयागराज। (20)


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