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जब उसी घर जाकर अलख जगाई तो तोते ने कहा-क्या बात! गुरु जी से पूछा नहीं ?
शिष्य ने कहा भाई! पूछा तो था पर गुरू जी तो एक दम बेहोश हो कर गिर गए। तोता मुस्कुराया, कहने लगा- ठीक है, रहस्य मेरी समझ में आ गया, अब आप जा सकते हो। शिष्य अपनी भिक्षा लेकर चला गया। उधर तोता पिंजरे में निढ़ाल पड़ गया, थोड़ी देर में मालिक आया, देखातोता बेहोश हो गया है। क्या करे बेचारा ! गर्मी ही बहुत पड़ रही है।
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उसने उस पर पानी के छींटे मारे और पिंजरे से बाहर निकाल छांव में रख दिया, सोचा-बेचारे को होश आ जाएगी तो पिंजरे में रख दूंगा । तोते ने एक आंख खोलकर देखा कि मालिक दूर चला गया, मौका सुनहरी है, उसने वहाँ सेमारी उडारी और उड़ते-उड़ते वहीं आ गया जहाँ वो शिष्य था । कहने लगा-भाई ! राम नाम सत् है, जो बोले सो गत् है "पर सुन
'चाबी गुरां दे हत्थ है'
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तो प्यारी आत्माओ ! संसारी और सन्यासी में यही अंतर है । संसारी मन का गुलाम होता है और 'मन' संत का गुलाम होता है। इस मन को वश करने की ही तो राह बताते है-संत। पर आप इसे वश करना ही नहीं चाहते। आप कहेंगे कैसे ? उसकी चर्चा अगले प्रवचन में करने का प्रयास करूंगा
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