Book Title: Kaise Kare Is Man Ko Kabu
Author(s): Amarmuni
Publisher: Guru Amar Jain Prakashan Samiti

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Page 10
________________ मनः स्थिति को अपने ज्ञान द्वारा जान रहे थे । जहाँ वे मुनि ध्यान मग्न थे वहाँ दो देव उनकी परीक्षा लेने आए। एक ने कहा-अहो ! धन्य है इस महामुनि को । कितनी कठोर साधना कर रहें हैं। दूसरे ने कहा- अरे खाक साधना है! ये तो भगोड़ा है भगौड़ा, छोटे से बेटे को राजा बनाकर स्वयं राजपाट छोड़ के भाग आया, वहाँ किसी शत्रु राजा ने चढ़ाई कर दी, अब बेचारा वो अबोध बालक भला क्या जाने युद्ध करना ? मुनि बेशक ध्यानस्थ हैं, मगर कानों ने तो अपना काम करना ही है । जब ये सुना तो एकदम ख्याल आया-अरे! मेरे बेटे पर शत्रु ने चढ़ाई कर दी ? मैं दूर हूँ तो क्या हुआ, पर हूँ तो जिंदा । देखता हूँ-शत्रु क्या बिगाड़ता है ! मेरे होते उसकी क्या औकात! बस मन के द्वारा ही पहुँच गए युद्ध के क्षेत्र में और लग गए युद्ध करने । मन के भावों और विचारों की तलवार द्वारा सैंकड़ों को मार दिया, हजारों को काट दिया, पर शत्रु तो बड़ा बलवान है, बढ़ता ही जा रहा है। अरे! मेरा ये सुदर्शन चक्र क्या काम आएगा ? उसी को घुमाने लगे । अचानक उंगली मस्तक से टकराई, ध्यान खुला, ओह ताज तो दूर मेरे सिर पे तो बाल भी नहीं, मैं तो मुनि बन चुका हूँ । पर किस बात का मुनि ? मुनि हो 8

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