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प्रकाशित हो रही है । आशा है कि प्रथम भाग की तरह
अन्य तीन भी हिन्दी में शीघ्र प्रकाशित होंगे । सिल कहे कलापूर्णसूरि चार भागों में विभक्त है ।
कहे कलापूर्णसूरि-१ में वांकी की वाचनाएं संगृहीत है और शेष तीन भाग में पालीताना की वाचनाएं संगृहीत
को गुजराती में चारों भाग, पूज्य आचार्यश्री की विद्यमानता में ही प्रकाशित हो चुके हैं । जो आज सखेद लिखना पड़ता है कि भारतीय जैन जनता में भगवान की तरह प्रतिष्ठित होनेवाले पूज्य आचार्यश्री अब हमारे बीच नहीं है ।
- अभी-अभी दो-तीन दिन पहले ही समाचार आये है कि पू. सा. सुवर्णप्रभाश्रीजी (वर्तमान गच्छाधिपति पू. आचार्यश्री विजयकलाप्रभसूरीश्वरजी म.सा. एवं विद्वद्वर्य पूज्य पं. श्री कल्पतरुविजयजी के मातुश्री, पू. बा महाराज) भी भरुच में वै. सु. १३, शुक्रवार, ता. २४-५-२००२ को शाम को ४.३० बजे समाधिपूर्वक कालधर्म प्राप्त हुए है । तर
पूज्य आचार्यश्री के आध्यात्मिक उत्थान में पू. बा महाराज का भी महत्त्वपूर्ण योग-दान रहा है। अगर इन्होंने संयम के लिए रजा नहीं दी होती तो? जीद्द करके बैठ गये होते तो ? अक्षयराजजी जो विश्व-विख्यात पू. कलापूर्णसूरिजी बन सके इसमें पू. बा महाराज का ऐसा महत्त्वपूर्ण योग-दान हैं कि जिसे कभी भूलाया नहीं जा सकता । यात पूज्य आचार्यश्री के स्वर्गगमन के सिर्फ ९८ दिन के बाद पू. बा महाराज का स्वर्गगमन बहुत ही आघात-जनक घटना है, लेकिन काल के सामने हम सभी निरुपाय है । हम सिर्फ इतनी ही कामना कर सकते है : दिवंगतों की आत्मा जहां भी हों, परम पद की साधना करती रहे और हम सब पर आशीर्वाद की वृष्टि करती रहे ।
इस पुस्तक को कैसे पढ़ेंगे ? याद रहें कि यह कोई उपन्यास या कहानी की पुस्तक