Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

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Page 13
________________ - काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में 2. व्यवहार काल के विविध मापदण्ड - व्यवहार काल को प्रदर्शित करने के लिये जैनाचार्यों ने अनेक माप दण्ड निर्धारित किये हैं। गोम्मटसार जीवकाण्ड28 एवं लोकविभाग29 में दिये गये विविध घटकों को निम्नानुसार देखा जा सकता है - काल का अविभागी अंश = 1 समय असंख्यात समय 1 आवली संख्यात आवली 1 उच्छ्वास 7 उच्छवास = 1 स्तोक 7 स्तोक = 1 लव 38.5 लव (24 मिनिट) = 1 नाली (घड़ी/घटी) = 1 मुहूर्त . 1 मुहूर्त में 1 समय कम भिन्नमुहूर्त/अंतर्मुहूर्त 30 मुहूर्त (24 घण्टा) __ = 1 दिनरात 15 दिन 1 पक्ष 2 पक्ष 1 मास 2 मास 1 ऋतु 3 ऋतु 1 अयन (छ: मास) 2 अयन व्यवहार काल सूचक इसीप्रकार के विविध घटकों की चर्चा किंचित् शब्द भेद करते हुये आचार्य यतिवृषभस्वामी ने तथा 28. गोम्मटसार जीवकाण्ड, गाथा 573 से 576 29. लोकविभाग, 6/201-204 30. तिलोयपण्णत्ती, 4/289-292 2 नाली - भिम 1 वर्ष

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