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काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में नहीं देखपाते थे, अब बच्चों का मुख देखकर डरने लगे - इसप्रकार की अनेक समस्याँए भोगभूमि के समापन के समय उत्पन्न होने लगती है, जिनका समुचित समाधान कुलकरों के माध्यम से किया जाता है।
उस समय अपराधी को यदि इतना कह दिया जाता था कि 'हा' अर्थात् ये क्या किया ? बस इतना शब्द मात्र अपराधी के लिये सजा का कार्य करता था। इससे बड़ी सजा के रूप में मकार दण्ड व्यवस्था प्रचलित हुई। जिसमें अपराधी को 'हा' के अतिरिक्त 'मा' कहा जाता था। 'मा' अर्थात् अब मत करना। सबसे बड़ी सजा थी – 'धिक्' अर्थात् धिक्कार है। इसप्रकार कुलकरों के समय हकार, मकार और धिक्कार (हा-मा-धिक) - ये तीन नीतियाँ दण्ड के रूप में प्रचलित हुई। ज्यों-ज्यों काल व्यतीत होता चला गया, त्यों-त्यों मानव के अन्तर्मानस में परिवर्तन होता गया और अधिकाधिक कठोर दण्ड की व्यवस्था की गई।
कुल परम्परा से हुये चौदह कुलकरों के सामने उपस्थित विविध प्रकार की समस्याओं/परिस्थितियों और उनके उपदेश द्वारा दिये गये विशिष्ट समाधान को तिलोयपण्णत्ती125 में 83 गाथाओं में, हरिवंशपुराण'26 में 46 श्लोकों में तथा आदिपुराणा27 में लगभग 100 श्लोकों में बहुत विस्तार से बताया है, यहाँ उस सम्पूर्ण विषय वस्तु को संक्षिप्त चार्ट के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। 125. तिलोयपण्णत्ती, 4/428-510 126. हरिवंश पुराण, 7/125 से 170 127. आदिपुराण, 3/55-151, 164