Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

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Page 65
________________ 64 काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में और आज के लोगों की जीवन शैली में जमीन-आसमान का अंतर है, और यह अंतर विकास की ओर है; हास की ओर नहीं।" उक्त बातें बौद्धिक स्तर पर सही प्रतीत होने पर भी यदि श्रद्धा के स्तर पर बात की जाये तो आगम की सत्यार्थता पर शंका नहीं की जा सकती; वह हमारे लिये शिरोधार्य है; अतः जरूरत है, इस दिशा में गहन चिंतन-मनन की। आज विज्ञान का विकास हुआ दिखता है; परन्तु इनके द्वारा मनुष्य की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं का हास ही हुआ है। आज कैलकुलेटर से हिसाब लगाना बहुत आसान हो गया है; पर हमारे दिमाग उतने ही कमजोर हो गये हैं। छोटे-छोटे हिसाब के लिये भी हम कैलकुलेटर तलाशते हैं। आज मनोरंजन के साधनों में टी.वी ने सर्वोच्च स्थान बना रखा है; पर क्या इससे हमारे सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन का हास नहीं हुआ है ? वाशिंग मशीन, मिक्सी आदि अनेक आधुनिक उपकरणों द्वारा यद्यपि घर में कार्यों में सुविधा हो गई है; परन्तु इससे हाथों से काम करने की क्षमता ही कम हुई है। आज शारीरिक संहनन/बल बहुत क्षीण हो गया है, हड्डियाँ काँच के समान हो गई है। - मोबाइल, कम्प्यूटर एवं इंटरनेट यद्यपि आज के समय में बहुत उपयोगी हैं, इनसे कार्य आसान हो गये हैं। पर क्या इनके बिना हम अपने आप को अपाहिज महसूस नहीं करते ? विज्ञान द्वारा जो विकास दिखाई देता है, कहीं यह विकास विनाश की दस्तक तो नहीं है ? मार्च 2011 में रेडियेशन की वजह से जापान में हुई तबाही किससे छिपी है।

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