Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

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Page 67
________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर स्वामी तक सभी तीर्थंकरों के शरीर की ऊँचाई एवं आयु पर दृष्टि देवें तो बात एकदम स्पष्ट हो जाती है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की ऊँचाई 500 धनुष (2000 हाथ) और अंतिम तीर्थंकर महावीरस्वामी की ऊँचाई मात्र 7 हाथ अर्थात् लगभग पौने नौ फीट । इसी प्रकार ऋषभदेव की आयु 84 लाख पूर्व एवं महावीर स्वामी की मात्र 72 वर्ष। चक्रवर्ती आदि सभी महापुरुषों की आयु, ऊँचाई आदि में भी इसी प्रकार का ग्राफ बनता है । 66 यह सब एकदम नहीं हुआ इसमें लगभग एक कोड़ाकोडी सागर का काल व्यतीत हुआ है। वर्तमान में हो रही शोध-खोज के अनुसार करोड़ों वर्षों पहले के प्राप्त अवशेषों आदि के आधार पर भी उनकी ऊँचाई आदि की सिद्धि हो जाती है। डायनासोर की खोज इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि उस काल में इतने विशालकाय जीव/प्राणी इस धरातल पर हुआ करते थे। ऐसे अनेक उदाहरणों से उक्त बातों को सिद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार प्रथमानुयोग एवं करणानुयोग में उपलब्ध इन बातों पर विश्वास भी कालचक्र को सही रूप में समझने से ही होता है । हमने सुना था कि छठे के बाद पुनः छठा काल आता है। आपने कवर पर छठे के बाद पहला लिखा है। क्या सही है ? वस्तुतः अवसर्पिणी के छठे काल के बाद उत्सर्पिणी काल प्रारंभ होता है; अतः वह उत्सर्पिणी का पहला काल ही है। उस पहले काल की परिस्थितियाँ अवसर्पिणी के छठे काल के समान ही होती हैं। अवसर्पिणी का छठा और उत्सर्पिणी का पहला

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