Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

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Page 66
________________ काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में __वस्तुतः अवसर्पिणी काल के सन्दर्भ में हास से तात्पर्य आयु, शरीर का उत्सेध (ऊँचाई), बाहुबल, धर्म, ज्ञान, गाम्भीर्य, धैर्य इत्यादि के हास से है। मात्र भौतिक विकास उन्नति का सूचक नहीं है। वर्तमान में शारीरिक सामर्थ्य आदि की कमी के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का भी हास होता जा रहा है। समाज का नैतिक एवं चारित्रिक पतन भी वर्तमान में अवसर्पिणी काल को ही सिद्ध करता है। प्रथम आदि कालों में बताई गई मनुष्यों की ऊँचाई, आयु आदि पर विश्वास नहीं होता ? पल्यों और पूर्व में आयु का वर्णन और धनुषों में ऊंचाई की चर्चा काल्पनिक सी लगती है? जिनागम के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के शरीर की ऊँचाई 500 धनुष थी। एक धनुष चार हाथ का होता है और एक हाथ लगभग सवा फीट का। इस प्रकार उनकी ऊँचाई लगभग 2500 फीट की थी। दूसरे प्रकार से देखें तो शास्त्रों में 2000 धनुष का एक कोस बताया गया है। एक कोस में लगभग तीन किलोमीटर होते है, तदनुसार भी 500 धनुष का अर्थ लगभग पौन किलोमीटर होता है। ऋषभदेव की आयु 84 लाख पूर्व की थी। एक पूर्व में 70 लाख 56 हजार करोड़ वर्ष होते हैं। ऐसे एक पूर्व की नहीं 84 लाख पूर्व की उनकी आयु थी। जब हम इसप्रकार की बातें पढ़ते-सुनते हैं, तो एकाएक विश्वास नहीं होता, पर यदि कालचक्र पर दृष्टि दी जाये तो इसमें काल्पनिक अथवा असम्भव लगने जैसी कोई बात नहीं है, क्योंकि वर्तमान में अवसर्पिणी काल चल रहा है।

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