Book Title: Kaalchakra Jain Darshan ke Pariprekshya me
Author(s): Sanjiv Godha
Publisher: A B D Jain Vidvat Parishad Trust

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Page 50
________________ अवस का पचम क काल चक्र : जैन दर्शन के परिप्रेक्ष्य में का उपार्जन तथा पात्रदान आदि के साथ कृषि आदि छह प्रकार के कर्म का आरम्भ भी यहीं पर होता है, इसलिये भरतादि (भरत, ऐरावत, विदेह) की कर्मभूमि संज्ञा सार्थक है। अवसर्पिणी का पंचम काल (दुषमा) - भगवान महावीरस्वामी का निर्वाण होने के तीन वर्ष आठ माह पन्द्रह दिन पश्चात् पंचम काल का प्रारंभ हुआ।145 यह पंचम काल 21000 वर्ष प्रमाण है, इसके प्रारंभ में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु 120 वर्ष, ऊँचाई 7 हाथ और पृष्ठ भाग की हड्डियाँ चौबीस कही गई हैं।146 ___भगवान महावीर निर्वाण के बाद भी इस पंचम काल के प्रारंभ में चतुर्थ काल के जन्मे अनेक लोगों ने मुक्ति प्राप्त की। भगवान महावीर के पश्चात् इन्द्रभूति गौतम, सुधर्मस्वामी एवं जम्बूस्वामी - ये तीन अनुबद्ध केवली147 हुये। इस युग में अंतिम मोक्ष जाने वालों में श्रीधर केवली का नाम आता है, वे कुण्डलपुर-दमोह से मोक्ष गये।148 केवलियों के पश्चात् द्वादशांग के ज्ञाता पाँच श्रुतकेवली हुये।149 अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहुस्वामी से प्रसिद्ध ऐतिहासिक सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जिनदीक्षा अंगीकार करने वाले अंतिम मुकुटबद्ध शासक थे। भारतीय इतिहास में भी चन्द्रगुप्त के 145. तिलोयपण्णत्ती, 4/1486 146. (1) वही, 4/1487 (2) लोकविभाग, 5/146 (पूर्वार्द्ध) 147. वही, 4/1488-89 148. 'कुंडलगिरिम्मि चरिमो, केवलणाणीसु सिरिधरो सिद्धो।' – तिलोयपण्णत्ती, 4/1491 149. तिलोयपण्णत्ती, 4/1494


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